"हमने पोरस नामक राजा उत्पन्न करने का श्रेय पंजाब के यादवों को दिया है। (प्रयाग से) पुरु चन्द्रवंशिओं की इस शाखा का उपनाम बन गया । इसे सिकंदर के इतिहासकारों ने पोरस कहा। शूरसेन के वंशज , मथुरा के शूरसैनी, सभी पुरु ही थे यानी मेगेस्थेनेस के "प्रासिओई" । " (एनल्स एंड एंटीक्विटिस ऑफ़ राजपुताना , कर्नल जेम्स टॉड, पृष्ठ 36 , 1873 ) संपादकीय टिपण्णी : प्रयाग यदुवंशिओं का प्राचीनतम उद्गम स्थल है। शूरसैनी यादवों के प्राचीन इतिहास में प्रयाग, मथुरा और द्वारका सबसे पवित्र देवभूमि माने जाते हैं जिन्हे यदुवंश की सभी शाखाओं के लोग अत्यंत भक्तिभाव से देखते हैं। टॉड ने प्रयाग को पुरु और पोरस का निरुक्त माना है लेकिन टॉड ने यह स्पष्ट कर दिया कि राजा पोरस को शूरसैनी कहना केवल नाम की समानता पर आधारित नहीं है। इसका कारण है कि विष्णु पुराण के अनुसार पंजाब द्वारका के बाद शूरसैनी यादवों का मुख्य ठिकाना बन गया था। रुचिकर बात यह भी है कि राजा पोरस के लगभग समकालीन वृष्णि संघ के सिक्के भी पंजाब के होशीआरपुर में पाए गए जो कि आज भी सैनी बाहुल्य क्षेत्र है। यह वृष्णि सिक्के पंजाब के बाहर आजतक कहीं और से नहीं मिले हैं। वृष्णि यादवों की वो शाखा है जिस से श्री कृष्ण और उनके पितामह महाराजा शूरसेन थे। वृष्णि और शूरसैनी एक ही थे । --------- "शूरसैनियों में सर्वश्रेष्ठ , शक्तिशाली, द्वारका में निवास करने वाले (श्री कृष्ण महाराज) सभी भू पतियों का दमन करेंगे और वह राजनीती शास्त्र में पूर्णतः निपुण होंगे । " (महाभारत , अनुशासन पर्व , 13 , 147 ) ---------- "राजस्थान में करौली में इनका शासन था। ये शूरसैनी कहलाते हैं । श्रीकृष्ण के दादा शूरसेन थे जिससे मथुरा के आसपास का देश शूरसेन कहलाता था और यहाँ के यादव शूरसैनी कहलाये ।"
(राजस्थान के राजपूत : उत्थान और पतन , पृष्ठ 131 , मांगी लाल महेचा , 1965 ) ---------- " शौरसैनी शाखावाले मथुरा व उसके आस पास के प्रदेशों में राज्य करते रहे। करौली के यदुवंशी राजा शौरसैनी कहे जाते हैं। समय के फेर से मथुरा छूटी और सं. 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी पर जा बसे। राजा विजयपाल के पुत्र तहनपाल (त्रिभुवनपाल) ने तहनगढ़ का किला बनवाया। तहनपाल के पुत्र (द्वितीय) और हरिपाल थे जिनका समय सं 1227 का है। "
- पृष्ठ 302 , नयनसी री ख्यात , दूगड़ (भाषांतकार ) ---------- "मुसलमानों के आक्रमणों ने पूर्वी पंजाब की राजपूत रियासतों में दरार पैदा कर दी। कुछ राजपूत वंश दक्षिण में राजपुताना के रेगिस्तान में भाग गए, अन्य ने हिमालय पर छुटभैये सरदारों पर विजय प्राप्त की और वहां खुद को स्थापित किया। कुछ योद्धाओं ने आक्रांताओं से समझौता करके ज़मीने प्राप्त की। सैनी अपने उद्गम का अनुरेखण उस राजपूत शाखा से करते हैं जो सबसे पहले वाले हुए मुस्लमान आक्रमणों से हिन्दुओं की रक्षा करने के लिए यमुना के तट पर दिल्ली के दक्षिण में मथुरा के निकट अपने ठिकाने से आये। " (दी लैंड ऑफ़ फाइव रिवर्स ; पंजाब का एक आर्थिक इतिहास --- पृष्ठ 100 , हुग कैनेडी ट्रेवस्किस , ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1928 ) |